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सोमवार, 31 जुलाई 2017

दो ग्रहों से मिल कर बनी है हमारी पृथ्वी

साढ़े चार अरब वर्ष पहले थिया से हुई थी जोरदार टक्कर
हमारे सौरमंडल में व्यास, द्रव्यमान अौर घनत्व के मामले में पृथ्वी सबसे बड़ा स्थलीय ग्रह है. लेकिन इसकी उत्पत्ति और जीवन की शुरुआत कैसे हुई, यह हमेशा से एक पहेली रही है़  समय-समय पर वैज्ञानिक इस बारे में अपने-अपने शोध समर्थित तर्क पेश करते रहते हैं. इस क्रम में एक नये शोध में यह बात सामने आयी है कि धरती की उत्पत्ति दो ग्रहों के टकरा कर जुड़ने से हुई है़  जानें इसे तफ्सील से -
क्या आपको पता है कि साढ़े चार अरब वर्ष पहले थिया नाम का एक ग्रहीय भ्रूण हमारे ग्रह के साथ टकराया था? जिस वक्त यह टक्कर हुई थी, उस समय हमारा ग्रह 10 करोड़ साल पुराना था. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया एंड लॉस एंजिलिस (यूसीएलए) के वैज्ञानिकों के मुताबिक थिया नाम का यह ग्रहीय भ्रूण मंगल या धरती के आकार के बराबर का था. वैसे यह पहले से पता था कि थिया और धरती की टक्कर हुई थी. हालांकि पहले खगोलविदों का मानना था कि दोनों ग्रह 45 डिग्री के कोण पर एक-दूसरे से टकराये थे, लेकिन नये शोध के मुताबिक यह टक्कर सीधी व जोरदार थी.           
शोधकर्ताओं ने तीन अपोलाे मिशन्स (अपोलाे 12, 15 और 17) के जरिये मिली चंद्रमा की सात चट्टानों का अध्ययन किया. उनकी तुलना हवाई व एरिजोना में मिली छह ज्वालीमुखीय चट्टानों से की़ इसमें पाया गया कि चट्टानों में मिले ऑक्सीजन के आइसोटोप्स में कोई अंतर नहीं था़ यह भी स्थापित हो गया कि दोनों ही चट्टानों में एक ही तरह के गुण-धर्म थे़
वहीं, शोध रिपोर्ट के मुख्य लेखक यूसीएलए में जियोकेमिस्ट्री और कॉस्मोकेमिस्ट्री के प्रोफेसर एडवर्ड यंग बताते हैं कि शोध के दौरान हमने धरती व चंद्रमा के ऑक्सीजन आइसोटोप्स में कोई अंतर नहीं पाया़   पुराने अध्ययन बताते हैं कि थिया व पृथ्वी की टक्कर मामूली सी थी, जिससे टूटकर चंद्रमा बना. यदि यही सही होता तो पृथ्वी और चंद्रमा के आइसोटोप्स एक जैसे न होकर अलग-अलग होते. चंद्रमा में थिया के अंश ज्यादा होते, जबकि ऐसा नहीं है़
दूसरी ओर, भारतीय मूल के एक शोधार्थी सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में एक नया सिद्धांत पेश किया है. इस दल ने धरती पर जीवन की उत्पत्ति के संबंध में ब्रह्मांडीय रासायनिक प्रतिक्रियाओं का नया रूप सामने रखा है. शोधकर्ताओं ने पाया कि धरती पर काष्ठ अल्कोहल के रूप में पहचाना जाने वाला मिथेन का एक यौगिक मिथेनॉल, मिथेन से भी ज्यादा प्रतिक्रियाशील है. प्रयोगों व गणना के जरिये वैज्ञानिकों ने यह प्रदर्शित किया कि मिथेनॉल विभिन्न किस्म के हाइड्रोकार्बन यौगिकों और उसके उत्पादों, जिनमें हाइड्रोकॉर्बन के आयन (कार्बोकेशन और कार्बेनियन) भी शामिल हैं, के विकास में सहायक हो सकता है.
साउथ कैरोलीना विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के मुख्य शोधकर्ता जॉर्ज ओला और जीके सूर्य प्रकाश का मानना है कि जब उल्का पिंडों और क्षुद्र ग्रहों के जरिये हाइड्रोकार्बन और अन्य उत्पाद धरती पर आये, तो यहां अनोखी 'गोल्डीलाक' जैसी स्थिति बनी.
नतीजा यह हुआ कि धरती पर पानी, सांस लेने योग्य वातावरण बनने के साथ-साथ तापमान नियंत्रित हो गया जिससे जीवन की शुरुआत हुई. गौरतलब है कि खगोलशास्त्र में किसी तारे का 'गोल्डीलाॅक जोन', यानि रहने लायक क्षेत्र उस तारे से उतनी दूरी का क्षेत्र होता है, जहां पृथ्वी जैसा ग्रह अपनी सतह पर द्रव (लिक्विड) अवस्था में पानी रख पाये और वहां पर जीव जी सकें.
बहरहाल, ब्रह्मांड के निर्माण के शुरुआती क्षणों में महाविस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा से हाइड्रोजन और हीलियम गैसें बनीं. अन्य तत्वों की उत्पत्ति बाद में ग्रह के गर्म भाग से हुई, जिनमें हाइड्रोजन के रूपांतरण से ही नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन और अन्य तत्वों की उत्पत्ति हुई. 
वैज्ञानिकों का कहना है कि लाखों वर्ष बाद जब सुपरनोवा विस्फोट हुआ तो अंतरिक्ष में ये तत्व फैल गये, जिनसे जल, हाइड्रोकार्बन यौगिक जैसे मिथेन और मेथेनॉल का निर्माण हुआ. लेकिन इन जटिल हाइड्रोकार्बन यौगिकों का निर्माण कैसे संभव हुआ, जिससे जीवन की शुरुआत हुई, यह जानने और समझने के लिए हमें अगले शोध की रिपोर्ट आने तक इंतजार करना होगा़

खुलेगा रहस्‍य, कैसे बनी पृथ्‍वी, इंसान और जानवर


खुलेगा रहस्‍य, कैसे बनी पृथ्‍वी, इंसान और जानवर 

जेनेवा। पहले अंडा की पहले मुर्गी वाली पहले अब सुलझने के करीब पहुंच गई है। आज दोपहर इस बात का ऐलान हो जायेगा कि आखिर ये धरती, इंसान या ये जानवर बने कैसे। आखिर हमें या इन्‍हें किस तत्‍व ने बनाया। फ्रांस और स्विटरजरलैंड की सीमा पर जेनेवा में बनी 27 किमी लंबी सुरंग नुमा प्रयोगशाला में गॉड पार्टिकल नाम के कण की तलाश अपने मुकाम तक पहुंच चुकी है। वैज्ञानिकों का मनना है कि इसी कण से ब्रह्मांड बना है। सूत्रों की मानें तो ऐसी उम्‍मीद जताई जा रही है कि वैज्ञानिकों ने जिन कणों को ढूंढ निकाला है वो उसे भगवान से जुड़ा नहीं मानते हैं। मगर उनका यह मानना जरुर है कि इसी कण से पूरी दुनिया की उत्‍पत्ति हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उर्जा का वो पुंज है जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया है। इस कण का नाम है गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोजोन। दुनिया इसका नाम जानती है लेकिन ये नहीं जानती कि असल में ये है क्या। मालूम हो कि हिग्स की खोज को इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में माना जा रहा है। सर्न के अंदर दो अलग अलग प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका नाम एटलर और सीएमएस है। दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना था। कई किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की गई थी, जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा था। यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया था, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके। यहां बता दें कि हिग्स बोसोन में बोसोन शब्द भारत के वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर रखा गया है। यह अलग बात है कि इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। देखना खासा रोचक होगा जब वैज्ञानिक ये बताएंगे कि असल में वो कौन सा तत्व है जिससे हमारा आपका निर्माण हुआ है। आखिरकार हिग्स बोजोन नाम की वो चीज है क्या जिसकी वजह से 13.7 खरब साल पहले ब्रह्मांड का अस्तित्व आया।

बुधवार, 3 मई 2017

जानिए, कौन था धरती का पहला मानव, कैसे हुआ था उसका जन्म aanie, kaun tha dharatee ka pahala maanav, kaise hua tha usaka janm

जानिए, कौन था धरती का पहला मानव, कैसे हुआ था उसका जन्म

Know, who was the first human on earth, how was born

कौन था दुनिया का पहला व्यक्ति? यह सवाल हमेशा हमारे जेहन में उठता रहता है। यह सवाल बहुत रोचक है, क्योंकि उसके बारे में हर कोई जानना चाहता है जिससे इतनी बड़ी दुनिया खड़ी हुई। लेकिन इस सवाल के जवाब को लेकर कई मान्यताएं रही हैं।
हिन्दू धर्म के पुराण के अनुसार दुनिया के पहले व्यक्ति का नाम 'मनु' था। वहीं पश्चिमी सभ्यता के अनुसार दुनिया का पहला व्यक्ति 'एडेम' था। पुराण में कहा गया है कि मनु की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने दो लोगों (स्त्री और पुरुष) को बनाया था, इसमें एक का नाम था 'मनु' और दूसरा 'शतरूपा'। दुनिया में जितने भी लोग मौजूद हैं यह सभी मनु से उत्पन्न हुए हैं। 
पुराणों के अनुसार जब ब्रह्मा ने देवों, असुरों और पित्रों निर्माण कर दिया। इसके बाद वे शक्तिहीन महसूस करने लगे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या बनाएं। उसी समय उनके अंदर से एक काया उत्पन्न हुई। वो उनकी तरह ही दिखने वाली परछाई जैसी दिख रही थी। इसी को संसार का पहला मानव 'मनु' कहा गया।
पश्चिमी सभ्यता का पहला मानव 'ऐडम'पश्चिमी सभ्यता के अनुसार बाइबल में भी ईश्वर के शरीर से एक परछाईं ने जन्म लिया था। इसे 'एडेम' का नाम दिया गया। एडेम के साथ ही भगवान ब्रह्मा की 'शतरूपा'की तरह ही पश्चिमी सभ्यता में भी 'एम्बेला' नाम के स्त्री का जन्म हुआ था। दोनों सभ्यताओं में एक स्त्री और एक पुरुष के जन्म की बात कही गई है, यही बात दोनों सभ्यताओं को काफी भिन्न बनाती हैं। 

बाइबल में लिखी गई कहानी के अनुसार एडेम का निर्माण खुद ईश्वर ने किया था लेकिन दूसरी ओर मनु तो स्वयं भगवान ब्रह्मा के शरीर से काया बनकर उत्पन्न हुआ था। दूसरी ओर मनुष्य का पहला स्त्री रूप बाइबल के अनुसार मनु की पसली द्वारा बनाया गया था लेकिन पुराण के मुताबिक शतरूपा का जन्म भी भगवान ब्रह्मा की निकली काया से ही हुआ था। दोनों सभ्यता और धर्मों के अनुसार भगवान और इश्वर द्वारा इन पहले मानवों को धरती पर एक दुनिया की उत्पत्ति का आदेश दिया गया।

‘मनुष्य’ शरीर कैसे बना और क्या है उसका रहस्य?

‘मनुष्य’ शरीर कैसे बना और क्या है उसका रहस्य?

श्रीमहाविष्णु को एक बार प्रसन्न मुद्रा में बैठे देखकर वैनतेय नामधारी गरुड़ ने उनसे पूछा, "हे परात्पर। हे परमपुरुष। हे जगन्नाथ। मैं यह जानना चाहता हूं कि जीव किस प्रकार जन्म और मृत्यु का कारण भूत बनता है। किन कारणों से वह स्वर्ग और नरक भोगता है? कैसे वह प्रेतात्मा बनकर कष्ट झेलता है?" इस पर अंतर्यामी श्रीमहाविष्णु ने गरुड़ पर प्रसन्न होकर उनको जन्म-मरण का रहस्य बताया। इस कारण से यह कथा गरुड़ पुराण नाम से लोकप्रिय बन गई। 
नैमिशारण्य में वेदव्यास के शिष्य महर्षि सूत ने शौनक आदि मुनियों को यह वृत्तांत सुनाया, "हे मुनिवृंद, वैनतेय ने श्रीमहाविष्णु से प्रश्न किया था कि हाड़-मांस, नसें, रक्त, मुंह, हाथ-पैर, सिर, नाक, कान, नेत्र, केश और बाहुओं से युक्त जीव के शरीर का निर्माण कैसे होता है? श्रीमहाविष्णु ने इसके जो कारण बताए, वे मैं आपको सुनाता हूं। 
प्राचीन काल में देवता और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में इंद्र ने वृत्रासुर का संहार किया। परिणामस्वरूप इंद्र ब्रह्महत्या के दोष के शिकार हुए। इंद्र भयभीत होकर ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनसे निवेदन किया कि वे उनको इस पाप से मुक्त कर दें। ब्रह्मा ने ब्रह्महत्या के दोष को चार भागों में विभाजित कर एक अंश स्त्रियों के सिर मढ़ दिया। स्त्रियों की प्रार्थना पर दया होकर ब्रह्मा ने उसके निवारण का उपाय बताया कि स्त्रियों के रजस्वला के प्रथम चार दिन तक ही उन पर यह दोष बना रहेगा।
ब्रह्मा ने कहा कि उन दिनों में स्त्रियां घर से बाहर रहेंगी। पांचवें दिन स्नान करके वे पवित्र बन जाएंगी। ये चार दिन वे पति के साथ संयोग नहीं कर सकेंगी। रजस्वला के छठे दिन से अठारह दिन तक यदि छठे, आठवें, दसवें, बारहवें, चौदहवें, सोलहवें और अठारहवें दिन वे पति के साथ संयोग करती हैं तो उन्हें पुरुष संतान की प्राप्ति होगी। ऐसा न होकर पांचवें दिन से लेकर अठारह दिन तक विषम दिनों में यानी पांच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, पंद्रह और सत्रहवें दिन मैथुन क्रिया संपन्न करने पर स्त्री संतान होगी। इसलिए पुत्र प्राप्ति करने की कामना रखनेवाले दम्पतियों को सम दिनों में ही दांपत्य सुख भोगना होगा।
ऋतुमती होने के चार दिन पश्चात अठारह दिन तक के सम दिन में मैथुन से यदि नारी गर्भ धारण करती है, तो गर्भस्थ शिशु की क्रमश: वृद्धि हो सुखी प्रसव होगा। वह शिशु शील, संपन्न और धर्मबुद्धिवाला होगा। रजस्वला के पांचवें दिन स्त्रियों को खीर, मिष्ठान्न आदि मधुर पदार्थो का सेवन करना होगा। तीखे पदार्थ वर्जित हैं। साधारणत: पांचवें दिन के पश्चात आठ दिनों के अंदर गर्भधारण होता है।
गर्भधारण के संबंध में भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। शयन गृह में दम्पति को अगरबत्ती, चंदन, पुष्प, तांबूल आदि का उपयोग करना चाहिए। इनके सेवन और प्रयोग से दम्पति का चित्त शीतल होता है। तब उन्हें परस्पर प्रेमपूर्ण रति-क्रीड़ा में पति और पत्नी के शुक्र और श्रोणित का संयोग होता है। परिणामस्वरूप पत्नी गर्भ धारण करती है। क्रमश: गर्भस्थ पिंड शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति दिन-प्रतिदिन प्रवर्धगमान होगा। रति क्रीड़ा के समय यदि पति के शुक्र की मात्रा अधिक स्खलित होती है तो पुरुष संतान होती, पत्नी के श्रोणित की मात्रा अधिक हो जाए तो स्त्री संतान के रूप में गर्भ शिशु का विकास होता है। अगर दोनों की मात्रा समान होकर पुरुष शिशु का जन्म होता है तो वह नपुंसक होगा। गर्भ धारण के रतिक्रीड़ा में स्खलित इंद्रियां गर्भ-कोशिका में एक गोल बिंदु या बुलबुला उत्पन्न करता है।
इसके बाद पंद्रह दिनों के अंदर उस बिंदु के साथ मांस सम्मिलित होकर विकसित होता है। फिर क्रमश: इसकी वृद्धि होती जाती है। एक महीने के पूरा होते-होते उस पिंड से पंच तत्वों का संयोग होता है। दूसरे महीने पिंड पर चर्म की परत जमने लगती है। तीसरे महीने में नसें निर्मित होती हैं। चौथे महीने में रोम, भौंहें, पलकें आदि का निर्माण होता है। 
पांचवें महीने में कान, नाक, वक्ष; छठे महीने में कंठ, सिर और दांत तथा सातवें महीने में यदि पुरुष शिशु हो तो पुरुष-चिह्न्, स्त्री शिशु हो तो स्त्री-चिह्न् का निर्माण होता है। आठवें महीने में समस्त अवयवों से पूर्ण शिशु का रूप बनता है। उसी स्थिति में उस शिशु के भीतर जीव या प्राण का अवतरण होता है। नौवें महीने में जीव सुषुम्न नाड़ी के मूल से पुनर्जन्म कर्म का स्मरण करके अपने इस जन्म धारण पर रुदन करता है। दसवें महीने में पूर्ण मानव की आकृति में माता के गर्भ से जन्म लेता है।
प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान-ये पांच 'प्राण वायु' कहलाते हैं। इसी प्रकार नाग, कर्म, कृकर, देवदत्त और धनंजय नामक अन्य पांच वायु भी हैं। इस शरीर में शुक्ल, अस्थियां, मांस, जल, रोम और रक्त नामक छह कोशिकाएं हैं। नसों से बंधित इस स्थूल शरीर में चर्म, अस्थियां, केश, मांस और नख-ये क्षिति या पृथ्वी से सम्बंधित गुण हैं।
मुंह में उत्पन्न होनेवाला लार, मूत्र, शुक्ल, पीव, व्रणों से रिसनेवाला जल-ये आप यानी जल गुण हैं। भूख, प्यास, निद्रा, आलस्य और कांति तेजोगुण हैं यानी अग्नि गुण है। इच्छ, क्रोध, भय, लज्जा, मोह, संचार, हाथ-पैरों का चालन, अवयवों का फैलाना, स्थिर यानी अचल होना-ये वायु गुण कहलाते हैं। ध्वनि भावना, प्रश्न, ये गगन यानी आकाशिस्थ गुण है। कान, नेत्र, नासिका, जिा, त्वचा, ये पांचों ज्ञानेंद्रिय हैं। इडा, पिंगला और सुषुम्ना ये दीर्घ नाड़ियां हैं। 
इनके साथ गांधारी, गजसिंह, गुरु, विशाखिनी-मिलकर सप्त नाड़ियां कहलाती हैं। मनुष्य जिन पदार्थो का सवेन करता है उन्हें उपरोक्त वायु उन कोशिकाओं में पहुंचा देती हैं। परिणामस्वरूम उदर में पावक के उपरितल पर जल और उसके ऊध्र्व भाग में खाद्य पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। इस जटराग्नि को वायु प्रज्वलित कर देती है।
मानव शरीर का गठन अति विचित्र है। इस शरीर में साढ़े तीन करोड़ रोम, बत्तीस दांत, बीस नाखून, सत्ताईस करोड़ शिरोकेश, तीन हजार तोले के वजन की मांसपेशियां, तीन सौ तोले वजन का रक्त, तीस तोले की मेधा, तीस तोले की त्वचा, छत्तीस तोले की मज्जा, नौ तोले का प्रधान रक्त और कफ, मल व मूत्र-प्रत्येक पदार्थ नौ तोले के परिमाण में निहित हैं। इनके अतिरिक्त अंड के भीतर की सारी वस्तुएं शरीर के अंदर समाहित हैं। 
इसी प्रकार शरीर के भीतर चौदह भुवन या लोक निहित हैं- ये भुवन शरीर के विभिन्न अंगों के प्रतीक हैं, जैसे-दायां पैर अतल नाम से व्यवह्रत है, तो एड़ी वितल, घुटना सुतल, घुटने का ऊपरी भाग यानी जांध रसातल, गुह्य पाश्र्व भाग तलातल, गुदा भाग महातल, मध्य भाग पाताल, नाभि स्थल भूलोक, उदर भुवर्लोक, ह्रदय सुवर्लोक, भुजाएं सहर्लोक, मुख जनलोक, भाल तपोलोक, शिरो भाग सत्यलोक माने जाते हैं।
इसी प्रकार त्रिकोण मेरु पर्वत, अघ: कोण, मंदर पर्वत, इन कोणों का दक्षिण पाश्र्व कैलाश वाम पाश्र्व हिमाचल, ऊपरी भाग निषध पर्वत, दक्षिण भाग गंधमादन पर्वत, बाएं हाथ की रेखा वरुण पर्वत नामों से अभिहित हैं।
अस्थियां जम्बू द्वीप कहलाती हैं। मेधा शाख द्वीप, मांसपेशियां कुश द्वीप, नसें क्रौंच द्वीप, त्वचा शालमली द्वीप, केश प्लक्ष द्वीप, नख पुष्कर द्वीप नाम से व्यवहृत हैं। जल समबंधी मूत्र लवण समुद्र नाम से पुकारा जाता है तो थूक क्षीर समुद्र, कफ सुरा सिंधु समुद्र, मज्जा आज्य समुद्र, लार इक्षु समुद्र, रक्त दधि समुद्र, मुंह में उत्पन्न होनेवाला जल शुदार्नव नाम से जाने जाते हैं।
मानव शरीर के भीतर लोक, पर्वत और समुद्र ही नहीं बल्कि ग्रह भी चक्रों के नाम से समाहित हैं। प्रधानत: मानव के शरीर में दो चक्र होते हैं- नाद चक्र और बिंदु चक्र। नाद चक्र में सूर्य और बिंदु चक्र में चंद्रमा का निवास होता है। इनके अतिरिक्त नेत्रों में अंगारक, ह्रदय में बुध, वाक्य में गुरु, शुक्ल में शुक्र, नाभि में शनि, मुख में राहू और कानों में केतु निवास करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य के भीतर भूमंडल और ग्रह मंडल समाहित है। यही मानव जन्म और शरीर का रहस्य है।

इंसान की उत्पत्ति मनुष्य कैसे बना manav ki utpatti

इंसान की उत्पत्ति मनुष्य कैसे बना manav ki utpatti

यह एक अनसुलझी रोचक पहेली है इसका सटीक प्रमाण कोई भी नहीं दे पाया है, इंसान की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है संसार में 2 मत चलते आ रहे है एक है धार्मिक तो दूसर वैज्ञानिकों हम दोनों हीं मतों के प्रमाणो को बताएँगे फिर आप बताये कौन सही है -

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार - सारे ब्रह्माण्ड का रचयिता भगवान है वह सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान है। उसी ने सूर्य, चांद, तारे, ग्रह, उपग्रह, जल थल, पेड़-पौधे एवं समस्त जीवों की रचना की है। मानव का पृथ्वी पर आगमन भी उसकी इच्छा और कृपा से हुआ है धार्मिक विद्वानों का मानना है कि आज से अरबों वर्ष पूर्व भगवान ने ऋषि मनु के रूप में प्रथम पुरुष, और शतरूपा के रूप में प्रथम स्त्री, की रचना की और सृष्टि की वृद्धि का दायित्व उन पर सौंपा इस दम्पत्ति ने सनक, सनातन, सनन्तकुमार एवं सनन्दन नामक चार पुत्रों को जन्म दिया 
परंतु इन चारों पुत्रों ने शादी नहीं की और आजीवन ब्रहम्चर्य का पालन किया अतः प्रभु का सौंपा गया कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका भगवान ने फिर नारद मुनि को इस कार्य के लिये मृत्यु लोक में भेजा। लेकिन नारद जी भी सृष्टि की वृद्धि में कोई योगदान नहीं कर पाये क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी कन्या से विवाह नहीं किया। अन्त में इस पुनीत कार्य का शुभारम्भ कश्यप ऋषि ने अपनी पत्नी अदिति एवं दिति के सहयोग से किया। ऐसा कहा जाता है कि अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुई तथा दिति से असुरो का जन्म हुआ। इसके पश्चात् सुरों और असुरो के परिवारों में निरन्तर वृद्धि होती गयी और पृथवी पर मनुष्यों का आधिपत्य होता चला गया

इस धार्मिक अवधारण के अनुसार जिस मानव को प्रथम बार पृथ्वी पर भेजा, वह आदि मानव शारीरिक एवं मानसिक रूप से पूर्णतः विकसित था आज के मनुष्य की तुलना में वह अधिक बलशाली, बुद्धिमान एवं तपस्वी था। असम्भव से असम्भव कार्य करने में वह समर्थ था। नारद जी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वह स्वर्गलोक और मृत्युलोक में सशरीर भ्रमण कर सकते थे। इसके पश्चात् रामायण एवं महाभारत काल में पैदा होने वाले पुरुष भी आधुनिक मनुष्य से अधिक बलवान थे। इस युग में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति महाभारत के भीम जैसा बलशाली नहीं है, जो हाथियों को उठाकर आसमान में फेंक दे। हमारा बड़ा से बड़ा तीरन्दाज भी अर्जुन की तरह घूमती मछली की ऑख की परछाईं को देखकर भेद नही सकता। आज तक इसयुग में किसी ऐसे शिशु का जन्म नहीं हुआ है जिसने गर्भावस्था में ही चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या सीख ली हो।ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले आज के धनुष धारी में भी इतना सामर्थ्य नही है कि वह भीष्म पितामह की भांति बाणों से गंगा नदी का बहाव रोक सकें।

वैज्ञानिक विचार धारा - धार्मिक विचारों के ठीक विपरीत है विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अनुसंधानों से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पृथ्वी का प्रत्येक प्राणी विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया की उपज है। इस प्रक्रिया के अनुसार भिन्न भिन्न जीवों की उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समय पर तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के भौगोलिक परिवेश में होती है।

आदिकाल से लेकर आजतक पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण में अनगिनत बदलाव आये हैं। इस बदलते पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए प्रत्येक जीव अपने अंदर अनेकों परिवर्तन करता है तथा विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। चिंपैंजी और गोरिल्ला से लेकर आजतक मनुष्य ने भी विकास की विभिन्नअवस्थाओं से गुजरते हुये आधुनिक स्वरूप धारण किया है 
According to science - जीव निर्धारित मात्रा में ईधन लेकर स्वयं एक सेल्स के रूप में जन्म लेता है और ईधन का समाप्ति पर स्वतः ही समाप्त हो जाता है। न कोई इसे मारता है न ही कोई इसे जन्म देता है। एक अध्ययन के अनुसार, सूर्य भी 7.6 बिलियन वर्षों के बाद अपने ईधन की समाप्ति के पश्चात् स्वयं ही नष्ट होकर ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा तथा अपने चारों ओर स्थित सभी ग्रहों तथा उपग्रहों को निगल जायेगा। विकास और विनाश की यह प्रक्रिया सतत् है इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण प्रत्येक प्राणी का जन्म होता है तथा इसी के कारण उसका अन्त हो जाता है।
विभिन्न काल की चट्टानों (Rocks) में छिपे पड़े कंकालों एवं जीवांशा के अध्ययन से पता चलता है कि जब पृथ्वी परजीव के पनपने के लिये उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो जाता है तब ही जीव का सृष्टि पर आगमन होता है। लगभग 600 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी का थल एवं वायुमण्डल बहुत गर्म था। इस प्रकार के पर्यावरण में किसी भी प्रकार के जीव का विकसित होना सम्भव नहीं था। अतः इस युग में करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी बिना जीवन के वीरान ही पड़ी रही। यही कारण है पृथ्वी के इस प्राचीनतम प्रारम्भिक युग को अजोईक अथवा जीवन-रहित युग कहा जाता है
धीरे धीरे पृथ्वी ठण्डी होती गयी और प्रीकैम्ब्रियन युग के आते-आते, पृथ्वी पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुये। Hydrogen और Oxigen गैसों मिलने से जल की उत्पत्ति हुई,

Biology - पृथ्वी पर सागरों एवं महासागरों का उद्भव हुआ। धरती पर जीवन की शुरूआत पहली बार इन सागरों के जल से ही हुई जल से उत्पन्न हुये जीवों का शरीर बहुत कोमल था पौधो पर फूल नहीं खिलतें थे। इसीलिए इस युग के पौधों को नान फलॉवरिंग अर्थात् फूलरहित कहा जाता है।

जैसे-जैसे समय और परिस्थियां बदलती गयी, जीवों में परिवर्तन होते गये। कुछ जीव लुप्त हो गये तथा कई नई प्रजातियों का अभ्युदय हुआ। ईसा से लगभग 500 मिलियन वर्ष पूर्व, कैम्ब्रीयन युग में सागरों में ऐसे जीवों की भरमार हो गई थी जिनमें रीढ़ की हड्डी(spinal cord) ही नहीं थी। इन जीवों को इनवर्टीब्रेट कहा जाता है। जल की रानी मछली का पर्दापण आज से 350 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। सिल्युरियन काल की इस मछली में फेफड़े नहीं थे। करोडों वर्षों के पश्चात् मछलियों ने अपने शरीर में फेफड़ों का विकास किया। इसी काल में जमीन पर पनपने वाले पौधों की भी उत्पत्ति हुई। परन्तु इस कालके आते-आते उन जीवों का पृथ्वी से बिल्कुल सफाया हो चुका था, जिनके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं थी।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, धरती के पर्यावरण में भारी बदलाव आते गये। जो जीव इन परिवर्तनों के अनुसार अपने आप को ढाल नही सके, वे हमेशा के लिये विलुप्त हो गये। एम्फीबियन प्रजाति के जीव, जो जमीन पर रह सकते थे तथा पानी में भी (जैसे मेढक, मगरमछ, कछुआ ) आज से 320 मिलियन वर्ष पूर्व डिवोनियन काल में पृथ्वी पर प्रकट हुये।

मैसोजोइक युग के जुरासिक काल में डायनासोर का आगमन हुआ। इस भारी भरकम जीव ने लगभग 90 मिलियन वर्षों तक पृथ्वी पर साम्राज्य किया। परन्तु एक उल्कापिण्ड के पृथ्वी से टकराने से भूमण्डल का पर्यावरण इतना धूल-धूसरित हो गया कि सूर्य का प्रकाश भी कई वर्षों तक जमीन तक नहीं पहुंच पाया। पर्यावरण के इस बदलाव को डायनासोर सहन नहीं कर सके और आज से 65 मिलियन वर्ष पृथ्वी से हमेशा के लिये गायब हो गये।

अनुमान scientists - इंसान आने वाले कुछ बर्षो में बदलाब करेगा प्रकृति के अनुसार और फिर इंसान भी दो भागो में विकास करेगा दोनों का जीनोम अलग हो जायेगा या क़ुदरत (Nature) में भयंकर बदलाब आयेगा भूकम्प आने से सभी नष्ठ हो जायेगा रहेगा केवल पानी।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मंगल मिशन कामयाब, भारत Tue mission successful, India mangal mishan kaamayaab, bhaarat

मंगल मिशन कामयाब, भारत ने रचा इतिहास

मंगल मिशन कामयाब, भारत ने रचा इतिहास


भारत ने आज अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया, जिसने अपने पहले ही प्रयास में ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है। सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई, ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा एमओएम का मंगल से मिलन।
एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने मोदी ने कहा विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे। खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी।
मंगलयान की सफलता के साथ ही भारत पहली ही कोशिश में मंगल पर जाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। यूरोपीय, अमेरिकी और रूसी यान लाल ग्रह की कक्षा में या जमीन पर पहुंचे हैं, लेकिन कई प्रयासों के बाद। मंगल यान को लाल ग्रह की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए कमांड द्वारा मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (मंगल परिक्रमा प्रवेश) की प्रक्रिया संपन्न हुई। यह यान सोमवार को मंगल के बेहद करीब पहुंच गया था।
जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशनों ने ग्रहण किये और आंकड़े वास्तविक समय (रीयल टाइम) पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का पहला संकेत तब मिला जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल ऑर्बिटर के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। इतिहास रचे जाने का संकेत देते हुए इसरो ने कहा मंगल ऑर्बिटर के सभी इंजन शक्तिशाली हो रहे हैं। प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। मुख्य इंजन का प्रज्ज्वलित होना महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह करीब 300 दिन से निष्क्रिय था और सोमवार को मात्र 4 सेकेंड के लिए सक्रिय हुआ था।
यह पूरी तरह इस पार या उस पार वाली स्थिति थी, क्योंकि तमाम कौशल के बावजूद एक मामूली सी भूल ऑर्बिटर को अंतरिक्ष की गहराइयों में धकेल सकती थी। यान की पूरी कौशल युक्त प्रक्रिया मंगल के पीछे हुई जैसा कि पृथ्वी से देखा गया। इसका मतलब यह था कि मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (एमओई) प्रज्ज्वलन में लगे 4 मिनट के समय से लेकर प्रक्रिया के निर्धारित समय पर समापन के तीन मिनट बाद तक पथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिक दल यान की प्रगति नहीं देख पाए।
ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम से कम 6 माह तक दीर्घ वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण एकत्र आंकड़े पृथ्वी पर भेजते रहेंगे। मंगल की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या जमीन पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी। कुल 450 करोड़ रुपये की लागत वाले मंगल यान का उद्देश्य लाल ग्रह की सतह तथा उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करना तथा उसके वातावरण में मीथेन गैस की खोज करना है। पथ्वी पर जीवन के लिए मीथेन एक महत्वपूर्ण रसायन है।
इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर 2013 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर 2013 को पथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकल गया था।
भारत का एमओएम बेहद कम लागत वाला अंतरग्रही मिशन है। नासा का मंगल यान मावेन 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एमओएम की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। कुल 1,350 किग्रा वजन वाले अंतरिक्ष यान में पांच उपकरण लगे हैं। इन उपकरणों में एक सेंसर, एक कलर कैमरा और एक थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। सेंसर लाल ग्रह पर जीवन के संभावित संकेत मीथेन यानी मार्श गैस का पता लगाएगा। कलर कैमरा और थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लाल ग्रह की सतह का तथा उसमें मौजूद खनिज संपदा का अध्ययन कर आंकड़े जुटाएंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और मावेन की टीम ने भारतीय यान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए इसरो को बधाई दी है।
दुनियाभर में सबसे सस्ता मंगल मिशन
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंचा। यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है।
आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, "हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से ज़्यादा है... यह बहुत बड़ी उपलब्धि है..." उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है।
अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है कि यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है, हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली।
मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की।
भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है।
मंगल मिशन के खास तथ्य
- भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बना।
- नासा, ईएसए और रॉसकोसमॉस के बाद इसरो मंगलग्रह की कक्षा में जाने वाला तीसरा संस्थान बना।
- मंगल पर कदम रखने वाला भारत एशिया का पहला देश बना गया। इसके साथ ही इस क्लब में क्लब का चौथा सदस्य बन गया। अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ही इस क्लब में शामिल थे।
- यह दुनिया का सबसे सस्ता सफल मंगल अभियान है। पीएम मोदी ने लॉन्च के वक्त कहा था कि इस मिशन की कीमत हॉलीवुड मूवी ग्रेविटी की प्रोडेक्शन कीमत से भी कम है।
- इसे श्रीहरिकोट के सतिश धवन स्पेस सेंटर से 5 नवंबर 2013 को पीएसएलवी-सी-25 से लॉ्च किया गया था। 450 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने तीन अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। इस मिशन ने 12 फरवरी 2014 को 100 दिन पूरे किए थे।
मंगल मिशन के पीछे है इनका दिमाग
- के. राधाकृष्णन: इसरो के चेयरमैन और स्पेस डिपार्टमेंट के सेक्रेट्री के पद पर कार्यरत हैं। इस मिशन का नेतृत्व इन्हीं के पास है और इसरो की हर एक एक्टिविटी की जिम्मेदारी इन्हीं के पास है।
- एम. अन्नादुरई: इस मिशन के प्रोग्राम के डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने इसरो 1982 में ज्वाइन किया था और कई प्रोजेक्टों का नेतृत्व किया है। इनके पास बजट मैनेजमेंट, शैड्यूल और संसाधनों की जिम्मेदारी है। ये चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्ट भी रहे हैं।
- एस. रामाकृष्णन: विक्रमसाराबाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर हैं और लॉन्च अथोरिजन बोर्ड के सदस्य हैं। उन्होंने 1972 में इसरो ज्वाइन किया था और और पीएसएलवी को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- एसके शिवकुमार: इसरो सैटेलाइट सेंटर के डायरेक्टर हैं। इन्होंने 1976 में इसरो ज्वाइन किया था और इनका कई भारतीय सैटेलाइट मिशनों में योगदान रहा है।
- इसके अलावा पी. कुंहीकृष्णन, चंद्रराथन, एएस किरण कुमार, एमवाईएस प्रसाद, एस अरूणन, बी जयाकुमार, एमएस पन्नीरसेल्वम, वी केशव राजू, वी कोटेश्वर राव का भी इस मिशन में अहम योगदान रहा।
मानव मिशन को लगेंगे पंख
मंगल मिशन के सफलता के करीब पहुंचने के बाद भारत अब चांद पर रोबोट उतारने और अंतरिक्ष में मानव भेजने के कार्यक्रमों पर तेजी से आगे बढ़ेगा। मिशन मंगल में इसरो ने अभी तक अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है। माना जा रहा है कि इसके बाद इसरो के लिए चंद्रयान-2 और अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं रह गया है।
लाल ग्रह के करीब पहुंचने के बाद मंगलयान के इंजन को चालू करने का परीक्षण भी सफल रहा है। इसरो के लिए यह सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि करीब तीन सौ दिन से बंद पड़े इंजन को 21.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी (रेडियो डिस्टेंस) से कमांड देकर चालू करना था। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक अब नए अभियानों के लिए कमर कसेंगे।
चंद्रयान-2 के निर्माण का काम प्रगति पर अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, मंगल मिशन के बाद इसरो का अगला कदम चांद पर रोबोट उतारने का है। चंद्रयान-2 का निर्माण प्रगति पर है। लैंडर और रोवर के परीक्षण शुरू हो गए हैं। चंद्रयान-2 चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा और लैंडर की मदद से एक रोबोटनुमा उपकरण रोवर चांद की सतह पर उतरकर आंकड़े एकत्र करेगा।
2017 के बाद अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने पर जोर अंतरिक्ष विभाग के सूत्रों के अनुसार मंगलयान की सफलता से अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत का आत्मविश्वास बढ़ा है। इसलिए अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की योजना पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे। इसके लिए इसरो ने पहले ही जरूरी अध्ययन कर लिए हैं। 2017 के बाद इस मिशन पर कार्य शुरू होगा और 2020 में इसरो अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजेगा। पहले चरण में इन्हें करीब 500 किलोमीटर की ही दूरी तक धरती की निचली कक्षा में मानव मिशन भेजा जाएगा और उसके बाद यह दायरा बढ़ाया जाएगा। इस योजना पर करीब 12 हजार करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है।
सूर्य का अध्ययन करेगा आदित्य-1इसके साथ ही इसरो सूर्य के इर्द-गिर्द भी अपना एक उपग्रह आदित्य-1 भेजने की योजना बना रहा है। इसका मकसद सौर ऊर्जा और सौर हवाओं पर अध्ययन करना है। इस मिशन में भी अब तेजी आएगी।
कक्षा में पहुंचते ही चालू हुए उपकरण
लिमन अल्फा फोटोमीटर (एलएपी)यह उपकरण मंगल के ऊपरी वायुमंडल में ड्यूटेरियम एवं हाइड्रोजन कणों की किसी भी रूप में मौजूदगी या इनकी किसी प्रक्रिया का पता लगाने में मदद करेगा। उपकरण में लगे अत्याधुनिक लेंस ऐसे कणों को खोज कर मुख्य नियंत्रण कक्ष को संदेश भेजते हैं।
मीथेन सेंसर फॉर मार्स (एमएसएम)यह उपकरण विशेष रूप से मीथेन गैस का पता लगाने के लिए है। मीथेन जो कार्बन के एक और हाइड्रोजन के चार अणुओं का मिश्रण है, उसका अरबवां हिस्सा भी यदि मंगल के वातावरण में मौजूद हुआ तो यह उपकरण उसका पता लगा लेगा।
मार्स एक्सोफेरिक कंपोजिसन एक्सोप्लोरर (एमईएनसीए)यह उपकरण यह पता लगाएगा कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल की प्राकृतिक संरचना कैसी है। यदि वहां हाइड्रोजन, मीथेन आदि नहीं भी है तो क्या है। मूलत यह मंगल पर मौजूद किसी भी प्राकृतिक संघटकों का पता लगाने का कार्य करेगा।
मार्स कलर कैमरा (एमसीसी)सतह का मानचित्रण करेगा। इस कैमरा से अधिकतम 50 गुणा 50 किमी दायरे के चित्र लिए जा सकते हैं। जबकि न्यूनतम 25 मीटर के दायरे में इसका किसी बिन्दु पर फोकस करके भी यह कैमरा चित्र ले सकता है। इस प्रकार सतह की स्थिति को समझने में मदद मिलेगी।
टीआईआर इमेजिंग स्पेक्टोमीटरमंगल की सतह पर खनिजों का पता लगाना। उपकरण से निकलने वाली खास किरणें मंगल की सतह में गहराई तक जाकर यह पता लगाएंगी कि वहां किस किस्म के खनिज भंडार छुपे हो सकते हैं।
मंगलयान के कुछ अहम दिन
05 नवंबर 2013 को प्रक्षेपित
01 दिसंबर को पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर
11 दिसंबर 2013 को पहली बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
11 जून 2014 को दूसरी बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
14 सितंबर को अंतरिक्षयान की कमांड अपलोड की गईं
22 सितंबर को मंगल के प्रभाव क्षेत्र में प्रवेश करेगा यान
24 सितंबर को मंगल की कक्षा में सुबह 7.30 बजे प्रवेश
मिशन की सफलता से बढ़ेगी भारत की धाक
- इससे भारत ने सुदूर अंतरिक्ष में पहुंचने की अपनी क्षमता हासिल की है। अभी तक भारत की उपस्थिति निचले अंतरिक्ष में ही पहुंचने तक सीमित थी।
- भविष्य में कभी मंगल पर मीथेन, हाइड्रोजन और अन्य खनिजों के भंडार मिलते हैं तो उस पर अमेरिका, रूस, यूरोप के साथ भारत की भी दावेदारी होगी।
- युवा वैज्ञानिकों में यह मिशन अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में जबरदस्त उत्साह पैदा करेगा। बच्चों में विज्ञान पढ़ने की ललक बढ़ेगी और शोध पर भी ध्यान बढ़ेगा।
- देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास होगा। भारत विदेशी उपग्रह बनाने और प्रक्षेपण का कार्य तेज करेगा। इससे इसरो की आय भी बढ़ेगी।
- अगले दो-चार सौ सालों में कभी मंगल पर आबादी बसने की राह खुली तो भारत के लिए वहां अपनी कालोनियां बसाना संभव होगा।
मैवेन भी मंगल की कक्षा में पहुंचा
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मंगल ग्रह का एक और अभियान सफल रहा। सोमवार की सुबह मंगल की कक्षा में प्रवेश के साथ ही नासा के अंतरिक्ष यान मैवेन ने ग्रह का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। यह मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने वाला अपने किस्म का पहला यान होगा। मैवेन की वैज्ञानिक टीम के जॉन क्लार्क ने कहा, मंगल एक ठंडी जगह है, परंतु वहां ज्यादा वायुमंडल नहीं है। वहां वायुमंडल, हमारे वायुमंडल से करीब आधा है जिसमें हम अभी सांस ले रहे हैं।
छह थ्रस्टर दागे गए मार्स एटमॉस्फीयर एंड वॉलेटाइल एवोल्यूशन(मैवेन) के छह रॉकेट थ्रस्टर दागकर 5.72 किमी प्रति सेकेंड से 4.47 किमी प्रति सेकेंड की गति पर लाया गया। नासा के गोडार्ड स्पेस सेंटर में विज्ञान क्षेत्र के उप निदेशक कोलीन हार्टमैन ने कहा कि मैवेन पता लगाएगा कि कैसे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल से सौर हवाएं परमाणुओं और अणुओं को उड़ा ले गईं।
पता लगाएगा कैसे गायब हुआ पानी मैवेन लाल ग्रह की जलवायु में आए परिवर्तनों का अध्ययन करने गया है। यह उपग्रह तथ्य जुटाएगा कि अरबों साल पहले मंगल की सतह पर मौजूद पानी और कार्बन डाइआक्साइड का क्या हुआ। मैवेन पता लगाएगा कि किस प्रकार मंगल समय बीतने के साथ गर्म और नमी के वातावरण से ठंडे और शुष्क जलवायु वाले ग्रह में बदला।
खोजी दल का सातवां सदस्य होगा मंगलयानमैवेन के पहले नासा के दो अन्य आर्बिटर, दो रोवर और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एक आर्बिटर मंगल की जलवायु, वायुमंडल और संरचना की थाह में लेने में जुटे हैं। मंगलयान इस खोजी दल का सातवां सदस्य होगा। नासा का क्यूरॉसिटी रोवर अभी मंगल के गेल क्रेटर और माउंट शार्प की चट्टानों की संरचना का अध्ययन कर रहा है।
मैवेन बनाम मंगलयान
नासा का मैवेन18 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 04 दिन की यात्रा
71.1 करोड़ किमी यात्रा
33 मिनट तक हुआ इंजन परीक्षण
7.55 बजे (22 सितंबर) को कक्षा में पहुंचा
01 वर्ष मिशन की अवधि
4026 करोड़ रुपये लागत
386 गुना 44600 किमी की कक्षा में घूमेगा
इसरो का मंगलयान05 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 19 दिन यात्रा
66.6 करोड़ किमी यात्रा
24 मिनट तक होगा इंजन परीक्षण
7.30 बजे (बुधवार सुबह) कक्षा में पहुंचा
06 माह मिशन की अवधि
450 करोड़ रुपये लागत
372 गुना 80 हजार किमी की कक्षा में घूमेगा
मंगल पर मानव को भेजने का अहम पड़ावअगर मैवेन कभी मंगल पर कभी मौजूद रहे जलस्रोतों के बारे में आंकड़े जुटा पाया तो यह इस ग्रह पर मानव को भेजने के मिशन की दिशा में अहम पड़ाव साबित होगा। इससे उन परिस्थितियों और विकल्पों को खोजने में मदद मिलेगी कि मानव वहां कैसे खुद को जिंदा रख सकता है। नासा ने वर्ष 2030 में इस ग्रह पर मानव को भेजने की योजना बनाई है।
लाल ग्रह की कैसे होगी निगरानी
- बंगलुरु के बयालू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से नजर
- नासा के फ्लोरिडा के जेट प्रोपल्शन सेंटर के वैज्ञानिक रखेंगे नजर
- कैनबरा और मैड्रिड में नासा के डीप स्पेस नेटवर्क से रहेगा संपर्क
आखिरी क्षण बेहद अहम
- कक्षा में प्रवेश करते वक्त दूरी, गति की सटीक स्थित जानना अहम
- मंगलयान के बारे में इसरो और नासा के आंकड़ों एक जैसे पाए गए
नासा ने शुरू की 20 हजार डॉलर की प्रतियोगितामंगल के वातावरण में प्रवेश करने वाले अंतरिक्ष यान को जरूरी वजन संतुलन मुहैया कराने में मददगार विज्ञान और तकनीक के छोटे उपकरणों का खाका तैयार करने वालों के लिए नासा ने 20,000 डॉलर का इनाम घोषित किया है। इसके लिए प्रविष्टियां 21 नवंबर तक भेजी जा सकेंगी। विजेता की घोषणा जनवरी 2015 के मध्य में होगी।

Kalpana Chawla (कल्पना चावला)

Kalpana Chawla (कल्पना चावला) एक भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी। वे कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों में से एक थीं।
कल्पना चावला का जन्म सन  १९६१ मे हरियाणा के करनाल शहर मे एक मध्य वेर्ग्याई परिवार मे हुआ था | उसकी पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला तथा और माता का नाम संज्योती था |                                                                वह अपने परिवार के चार भाई बहनों मे सबसे छोटी थी | घर मे सब उसे प्यार से मोटो कहते थे | कल्पना की प्रारंभिक पढाई लिखाई टैगोर  काल निकेतन मे हुई | कल्पना जब आठवी कक्षा मे पहुची तो उसने इंजिनियर बनने की इच्छा प्रकट की | उसकी माँ ने  अपनी बेटी की भावनाओ को समझा और आगे बढने मे मदद की | कल्पना का सर्वाधिक महत्व पूर्ण गुण था - उसकी लगन और जुझारू प्रवर्ती | प्रफुल्ल स्वभाव तथा बढ़ते अनुभव के साथ कल्पना न तो काम करने मे आलसी थी और न असफलता मे घबराने वाली थी | धीरे-धीरे निश्चयपूर्वक युवती कल्पना ने स्त्री - पुरुष के भेद-भाव से उपपर उठ कर काम किया तथा कक्षा मे अकेली छात्रा होने पर भी उसने अपनी अलग छाप छोड़ी |
अपनी उच्च शिक्षा के लिये कल्पना ने अमेरिका जाने का मन बना लिया | उसने सदा अपनी महत्वाकाक्षा को मन मे सजाए रखा |
उसने ७ नवम्बर २००२ को टेक्सास विश्वविद्यालय मे एक समाचार  पत्र को बतया "मुझे कक्षा मे जाना और उड़ान छेत्र के विषय  मे सीखने मे व प्रश्नों के उत्तर पाने मे बहुत आनंद आता था "| अमेरिका पहुचने पर उसकी मुलाकत एक लम्बे कद के एक अमेरिकी व्यक्ति जीन पियरे हैरिसन से हुई | कल्पना ने हैरिसन के निवास के निकट ही एक अपार्टमेन्ट में अपना निवास बनाया इससे से विदेशी परिवेश में ढलने में कल्पना को कोई कठिनाई नहीं हुई | कक्षा में इरानी सहपाठी इराज कलखोरण उसका मित्र बना |
इरानी मित्र ने कक्षा के परवेश तथा उससे उत्पन समस्या को भाप लिया उसे वहा के तोर्तारिके समझाने लगा | कल्पना शर्मीले स्वभाव की होते हुआ भी एक अच्छी श्रोता थी | जीन पीयरे से कल्पना की भेट धीरे -धीरे मित्रता में बदल गई | विश्वविद्यालय परिसर में ही 'फ्लाईंग  क्लब 'होने से कल्पना वहा प्राय जाने लगी थी |फ्लाईंग का छात्र होने के साथ-साथ जीन पियरे अच्छा गोताखोर भी था |
एक साल बाद १९८३ में एक सामान्य समारोह में दोनों विवाह - सूत्र में बन्ध गए |  मास्टर की डिग्री प्राप्त करने तक कल्पना ने कोलोरेडो जाने  का मन बना लिया | मैकेनिकल इंजीनियरिंग में doctorait करने के लिए उसने कोलोरेडो के नगर बोल्डर के विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया | सन १९८३ में कल्पना कलिफोर्निया की सिल्कॉंन  ओनर सेट मैथड्स इन्फ्रो में उपाध्यक्ष एवं शोध विज्ञानिक के रूप में जुड़ गयी |जिसका दायित्व अर्रो डायनामिक्स के कारण अधिकाधिक प्रयोग की तकनीक तैयार करना और उसे लागू करना था | अंतरिक्ष में गुरुत्वकर्ष्ण में कमी के कारण मानव शरीर के सभी अंग स्वता क्रियाशील होने लगते है | कल्पना को उन क्रियाओ का अनुसरण कर उनका अध्यन करना था | इसमे भी कल्पना व् जीन पियरे की टोली सबसे अच्छी रही जिसने सबको आश्चर्य में ड़ाल दिया | नासा के अंतरिक्ष अभियान कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा रखने वालो की कमी नहीं थी | नासा अंतरिक्ष यात्रा के लिय जाने का गौरव विरले ही लोगो के भाग्य में होता है और कल्पना ने इसे प्राप्त किया |
६ मार्च १९९५ को कल्पना ने एक वर्षीय प्रशिक्षण प्रारंभ किया था वेह दस चालको के दल मे सम्मलित होने वाले नौ अभियान विशेषज्ञ मे से एक थी | नवम्बर १९९६ मे अंतत: वह सब कुछ समझ गई | जब उसे अभियान विशेषज्ञ तथा रोबोट संचालन का कार्य सौपा गया | तब टेक कल्पना ना मे सम्नायता के .सी  के नाम से विख्यात हो गई थी | वह नासा दवारा चुने गये अन्तरिक्ष यात्रियों के पंद्रहवे दल के सदस्य के रूप मे प्रशिक्षण मे सम्लिलित हो गई | पहली बार अंतरिक्ष यात्रा का स्वपन १९ नवम्बर १९९७ को भारतीय समय  के अनुसार लगभग २ बजे एस.टी.एस-८७ अंतरिक्ष यान के द्वारा पूरा हुआ | कल्पना के लिए येहे अनुभव स्वं में विनम्रता व जागरूकता लिए हुआ था कि किस प्रकार पृथ्वी  के सौन्दर्य एवम उसमें उपलब्ध धरोहरों को संजोये रखा जा सकता है|
नासा ने पुनः कल्पना को  अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना | जनवरी १९९८ में उसे शटल यान के चालक दल का प्रतिनिधि धोषित किया गया और शटल संशन फलाइट क्रू  के साजसामान का उत्तरदायित्व दिया गया |बाद में वह चालक  दल प्रणाली तथा अवासीयें विभाग कि प्रमुख नियुक्त की गयी | सन २००० में उसे एस.टी.एस -१०७ के चालक दल में सम्मलित किया गया |
अंतरिक्ष यान का नाम कोलंबिया  रखा गया जिसकी तिथि १६ जनवरी २००३ निश्चित की  गई | एस .टी .एस - १०७ अभियान वैज्ञानिक खोज पर केन्द्रित था | प्रतिदिन सोलह घंटे से अधिक कार्य करने पर अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी सम्बन्धी वैज्ञानिक अंतरिक्ष विज्ञान तथा जीव विज्ञान पर प्रयोग करते रहे |
सभी तरह  के अनुसंधान तथा विचार - विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल मे अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई | नासा तथा सम्पूर्ण विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी | कोलंबिया  अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया कल्पना सहित उसके छै साथियों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु से चारो ओर सन्नाटा छ: गया |
इन सात अंतरिक्ष यात्रियों की आत्मा , जो फ़रवरी २००३ की मनहूस सुबह को शून्य मे विलीन हुई,सदैव संसार मे विदयमान रहेगी | करनाल से अंतरिक्ष तक की कल्पना की यात्रा सदा हमारे साथ रहेगी |
पुरस्कार
मरणोपरांत:
* काँग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान
* नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
* नासा विशिष्ट सेवा पदक
* प्रतिरक्षा विशिष्ट सेवा पदक