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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मंगल मिशन कामयाब, भारत Tue mission successful, India mangal mishan kaamayaab, bhaarat

मंगल मिशन कामयाब, भारत ने रचा इतिहास

मंगल मिशन कामयाब, भारत ने रचा इतिहास


भारत ने आज अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि हासिल करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया, जिसने अपने पहले ही प्रयास में ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है। सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर 440 न्यूटन लिक्विड एपोजी मोटर (एलएएम), यान को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट कराने वाले थ्रस्टर्स के साथ तेजी से सक्रिय हुई, ताकि मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यान की गति इतनी धीमी हो जाए कि लाल ग्रह उसे खींच ले। मिशन की सफलता का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा एमओएम का मंगल से मिलन।
एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था, वहीं दूसरी ओर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने मोदी ने कहा विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे। खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी।
मंगलयान की सफलता के साथ ही भारत पहली ही कोशिश में मंगल पर जाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। यूरोपीय, अमेरिकी और रूसी यान लाल ग्रह की कक्षा में या जमीन पर पहुंचे हैं, लेकिन कई प्रयासों के बाद। मंगल यान को लाल ग्रह की कक्षा खींच सके, इसके लिए यान की गति 22.1 किमी प्रति सेकंड से घटा कर 4.4 किमी प्रति सेकंड की गई और फिर यान में डाले गए कमांड द्वारा मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (मंगल परिक्रमा प्रवेश) की प्रक्रिया संपन्न हुई। यह यान सोमवार को मंगल के बेहद करीब पहुंच गया था।
जिस समय एमओएम कक्षा में प्रविष्ट हुआ, पृथ्वी तक इसके संकेतों को पहुंचने में करीब 12 मिनट 28 सेकंड का समय लगा। ये संकेत नासा के कैनबरा और गोल्डस्टोन स्थित डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशनों ने ग्रहण किये और आंकड़े वास्तविक समय (रीयल टाइम) पर यहां इसरो स्टेशन भेजे गए। अंतिम पलों में सफलता का पहला संकेत तब मिला जब इसरो ने घोषणा की कि भारतीय मंगल ऑर्बिटर के इंजनों के प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। इतिहास रचे जाने का संकेत देते हुए इसरो ने कहा मंगल ऑर्बिटर के सभी इंजन शक्तिशाली हो रहे हैं। प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है। मुख्य इंजन का प्रज्ज्वलित होना महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह करीब 300 दिन से निष्क्रिय था और सोमवार को मात्र 4 सेकेंड के लिए सक्रिय हुआ था।
यह पूरी तरह इस पार या उस पार वाली स्थिति थी, क्योंकि तमाम कौशल के बावजूद एक मामूली सी भूल ऑर्बिटर को अंतरिक्ष की गहराइयों में धकेल सकती थी। यान की पूरी कौशल युक्त प्रक्रिया मंगल के पीछे हुई जैसा कि पृथ्वी से देखा गया। इसका मतलब यह था कि मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन (एमओई) प्रज्ज्वलन में लगे 4 मिनट के समय से लेकर प्रक्रिया के निर्धारित समय पर समापन के तीन मिनट बाद तक पथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिक दल यान की प्रगति नहीं देख पाए।
ऑर्बिटर अपने उपकरणों के साथ कम से कम 6 माह तक दीर्घ वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण एकत्र आंकड़े पृथ्वी पर भेजते रहेंगे। मंगल की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या जमीन पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी। कुल 450 करोड़ रुपये की लागत वाले मंगल यान का उद्देश्य लाल ग्रह की सतह तथा उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करना तथा उसके वातावरण में मीथेन गैस की खोज करना है। पथ्वी पर जीवन के लिए मीथेन एक महत्वपूर्ण रसायन है।
इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर 2013 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर 2013 को पथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकल गया था।
भारत का एमओएम बेहद कम लागत वाला अंतरग्रही मिशन है। नासा का मंगल यान मावेन 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एमओएम की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। कुल 1,350 किग्रा वजन वाले अंतरिक्ष यान में पांच उपकरण लगे हैं। इन उपकरणों में एक सेंसर, एक कलर कैमरा और एक थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। सेंसर लाल ग्रह पर जीवन के संभावित संकेत मीथेन यानी मार्श गैस का पता लगाएगा। कलर कैमरा और थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लाल ग्रह की सतह का तथा उसमें मौजूद खनिज संपदा का अध्ययन कर आंकड़े जुटाएंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बताया कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और मावेन की टीम ने भारतीय यान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के लिए इसरो को बधाई दी है।
दुनियाभर में सबसे सस्ता मंगल मिशन
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंचा। यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है।
आंध्र प्रदेश में समुद्रतट पर स्थापित और भारत के रॉकेट पोर्ट कहे जाने वाले श्रीहरिकोटा में इसी वर्ष जून के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टिप्पणी की थी, "हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म 'ग्रेविटी' का बजट हमारे मंगल अभियान से ज़्यादा है... यह बहुत बड़ी उपलब्धि है..." उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है।
अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है कि यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है, हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली।
मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की।
भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है।
मंगल मिशन के खास तथ्य
- भारत पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बना।
- नासा, ईएसए और रॉसकोसमॉस के बाद इसरो मंगलग्रह की कक्षा में जाने वाला तीसरा संस्थान बना।
- मंगल पर कदम रखने वाला भारत एशिया का पहला देश बना गया। इसके साथ ही इस क्लब में क्लब का चौथा सदस्य बन गया। अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ही इस क्लब में शामिल थे।
- यह दुनिया का सबसे सस्ता सफल मंगल अभियान है। पीएम मोदी ने लॉन्च के वक्त कहा था कि इस मिशन की कीमत हॉलीवुड मूवी ग्रेविटी की प्रोडेक्शन कीमत से भी कम है।
- इसे श्रीहरिकोट के सतिश धवन स्पेस सेंटर से 5 नवंबर 2013 को पीएसएलवी-सी-25 से लॉ्च किया गया था। 450 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने तीन अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। इस मिशन ने 12 फरवरी 2014 को 100 दिन पूरे किए थे।
मंगल मिशन के पीछे है इनका दिमाग
- के. राधाकृष्णन: इसरो के चेयरमैन और स्पेस डिपार्टमेंट के सेक्रेट्री के पद पर कार्यरत हैं। इस मिशन का नेतृत्व इन्हीं के पास है और इसरो की हर एक एक्टिविटी की जिम्मेदारी इन्हीं के पास है।
- एम. अन्नादुरई: इस मिशन के प्रोग्राम के डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने इसरो 1982 में ज्वाइन किया था और कई प्रोजेक्टों का नेतृत्व किया है। इनके पास बजट मैनेजमेंट, शैड्यूल और संसाधनों की जिम्मेदारी है। ये चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्ट भी रहे हैं।
- एस. रामाकृष्णन: विक्रमसाराबाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर हैं और लॉन्च अथोरिजन बोर्ड के सदस्य हैं। उन्होंने 1972 में इसरो ज्वाइन किया था और और पीएसएलवी को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- एसके शिवकुमार: इसरो सैटेलाइट सेंटर के डायरेक्टर हैं। इन्होंने 1976 में इसरो ज्वाइन किया था और इनका कई भारतीय सैटेलाइट मिशनों में योगदान रहा है।
- इसके अलावा पी. कुंहीकृष्णन, चंद्रराथन, एएस किरण कुमार, एमवाईएस प्रसाद, एस अरूणन, बी जयाकुमार, एमएस पन्नीरसेल्वम, वी केशव राजू, वी कोटेश्वर राव का भी इस मिशन में अहम योगदान रहा।
मानव मिशन को लगेंगे पंख
मंगल मिशन के सफलता के करीब पहुंचने के बाद भारत अब चांद पर रोबोट उतारने और अंतरिक्ष में मानव भेजने के कार्यक्रमों पर तेजी से आगे बढ़ेगा। मिशन मंगल में इसरो ने अभी तक अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है। माना जा रहा है कि इसके बाद इसरो के लिए चंद्रयान-2 और अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं रह गया है।
लाल ग्रह के करीब पहुंचने के बाद मंगलयान के इंजन को चालू करने का परीक्षण भी सफल रहा है। इसरो के लिए यह सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि करीब तीन सौ दिन से बंद पड़े इंजन को 21.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी (रेडियो डिस्टेंस) से कमांड देकर चालू करना था। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक अब नए अभियानों के लिए कमर कसेंगे।
चंद्रयान-2 के निर्माण का काम प्रगति पर अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, मंगल मिशन के बाद इसरो का अगला कदम चांद पर रोबोट उतारने का है। चंद्रयान-2 का निर्माण प्रगति पर है। लैंडर और रोवर के परीक्षण शुरू हो गए हैं। चंद्रयान-2 चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा और लैंडर की मदद से एक रोबोटनुमा उपकरण रोवर चांद की सतह पर उतरकर आंकड़े एकत्र करेगा।
2017 के बाद अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने पर जोर अंतरिक्ष विभाग के सूत्रों के अनुसार मंगलयान की सफलता से अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत का आत्मविश्वास बढ़ा है। इसलिए अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की योजना पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे। इसके लिए इसरो ने पहले ही जरूरी अध्ययन कर लिए हैं। 2017 के बाद इस मिशन पर कार्य शुरू होगा और 2020 में इसरो अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजेगा। पहले चरण में इन्हें करीब 500 किलोमीटर की ही दूरी तक धरती की निचली कक्षा में मानव मिशन भेजा जाएगा और उसके बाद यह दायरा बढ़ाया जाएगा। इस योजना पर करीब 12 हजार करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है।
सूर्य का अध्ययन करेगा आदित्य-1इसके साथ ही इसरो सूर्य के इर्द-गिर्द भी अपना एक उपग्रह आदित्य-1 भेजने की योजना बना रहा है। इसका मकसद सौर ऊर्जा और सौर हवाओं पर अध्ययन करना है। इस मिशन में भी अब तेजी आएगी।
कक्षा में पहुंचते ही चालू हुए उपकरण
लिमन अल्फा फोटोमीटर (एलएपी)यह उपकरण मंगल के ऊपरी वायुमंडल में ड्यूटेरियम एवं हाइड्रोजन कणों की किसी भी रूप में मौजूदगी या इनकी किसी प्रक्रिया का पता लगाने में मदद करेगा। उपकरण में लगे अत्याधुनिक लेंस ऐसे कणों को खोज कर मुख्य नियंत्रण कक्ष को संदेश भेजते हैं।
मीथेन सेंसर फॉर मार्स (एमएसएम)यह उपकरण विशेष रूप से मीथेन गैस का पता लगाने के लिए है। मीथेन जो कार्बन के एक और हाइड्रोजन के चार अणुओं का मिश्रण है, उसका अरबवां हिस्सा भी यदि मंगल के वातावरण में मौजूद हुआ तो यह उपकरण उसका पता लगा लेगा।
मार्स एक्सोफेरिक कंपोजिसन एक्सोप्लोरर (एमईएनसीए)यह उपकरण यह पता लगाएगा कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल की प्राकृतिक संरचना कैसी है। यदि वहां हाइड्रोजन, मीथेन आदि नहीं भी है तो क्या है। मूलत यह मंगल पर मौजूद किसी भी प्राकृतिक संघटकों का पता लगाने का कार्य करेगा।
मार्स कलर कैमरा (एमसीसी)सतह का मानचित्रण करेगा। इस कैमरा से अधिकतम 50 गुणा 50 किमी दायरे के चित्र लिए जा सकते हैं। जबकि न्यूनतम 25 मीटर के दायरे में इसका किसी बिन्दु पर फोकस करके भी यह कैमरा चित्र ले सकता है। इस प्रकार सतह की स्थिति को समझने में मदद मिलेगी।
टीआईआर इमेजिंग स्पेक्टोमीटरमंगल की सतह पर खनिजों का पता लगाना। उपकरण से निकलने वाली खास किरणें मंगल की सतह में गहराई तक जाकर यह पता लगाएंगी कि वहां किस किस्म के खनिज भंडार छुपे हो सकते हैं।
मंगलयान के कुछ अहम दिन
05 नवंबर 2013 को प्रक्षेपित
01 दिसंबर को पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर
11 दिसंबर 2013 को पहली बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
11 जून 2014 को दूसरी बार प्रक्षेप पथ ठीक किया गया
14 सितंबर को अंतरिक्षयान की कमांड अपलोड की गईं
22 सितंबर को मंगल के प्रभाव क्षेत्र में प्रवेश करेगा यान
24 सितंबर को मंगल की कक्षा में सुबह 7.30 बजे प्रवेश
मिशन की सफलता से बढ़ेगी भारत की धाक
- इससे भारत ने सुदूर अंतरिक्ष में पहुंचने की अपनी क्षमता हासिल की है। अभी तक भारत की उपस्थिति निचले अंतरिक्ष में ही पहुंचने तक सीमित थी।
- भविष्य में कभी मंगल पर मीथेन, हाइड्रोजन और अन्य खनिजों के भंडार मिलते हैं तो उस पर अमेरिका, रूस, यूरोप के साथ भारत की भी दावेदारी होगी।
- युवा वैज्ञानिकों में यह मिशन अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में जबरदस्त उत्साह पैदा करेगा। बच्चों में विज्ञान पढ़ने की ललक बढ़ेगी और शोध पर भी ध्यान बढ़ेगा।
- देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास होगा। भारत विदेशी उपग्रह बनाने और प्रक्षेपण का कार्य तेज करेगा। इससे इसरो की आय भी बढ़ेगी।
- अगले दो-चार सौ सालों में कभी मंगल पर आबादी बसने की राह खुली तो भारत के लिए वहां अपनी कालोनियां बसाना संभव होगा।
मैवेन भी मंगल की कक्षा में पहुंचा
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मंगल ग्रह का एक और अभियान सफल रहा। सोमवार की सुबह मंगल की कक्षा में प्रवेश के साथ ही नासा के अंतरिक्ष यान मैवेन ने ग्रह का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है। यह मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने वाला अपने किस्म का पहला यान होगा। मैवेन की वैज्ञानिक टीम के जॉन क्लार्क ने कहा, मंगल एक ठंडी जगह है, परंतु वहां ज्यादा वायुमंडल नहीं है। वहां वायुमंडल, हमारे वायुमंडल से करीब आधा है जिसमें हम अभी सांस ले रहे हैं।
छह थ्रस्टर दागे गए मार्स एटमॉस्फीयर एंड वॉलेटाइल एवोल्यूशन(मैवेन) के छह रॉकेट थ्रस्टर दागकर 5.72 किमी प्रति सेकेंड से 4.47 किमी प्रति सेकेंड की गति पर लाया गया। नासा के गोडार्ड स्पेस सेंटर में विज्ञान क्षेत्र के उप निदेशक कोलीन हार्टमैन ने कहा कि मैवेन पता लगाएगा कि कैसे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल से सौर हवाएं परमाणुओं और अणुओं को उड़ा ले गईं।
पता लगाएगा कैसे गायब हुआ पानी मैवेन लाल ग्रह की जलवायु में आए परिवर्तनों का अध्ययन करने गया है। यह उपग्रह तथ्य जुटाएगा कि अरबों साल पहले मंगल की सतह पर मौजूद पानी और कार्बन डाइआक्साइड का क्या हुआ। मैवेन पता लगाएगा कि किस प्रकार मंगल समय बीतने के साथ गर्म और नमी के वातावरण से ठंडे और शुष्क जलवायु वाले ग्रह में बदला।
खोजी दल का सातवां सदस्य होगा मंगलयानमैवेन के पहले नासा के दो अन्य आर्बिटर, दो रोवर और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एक आर्बिटर मंगल की जलवायु, वायुमंडल और संरचना की थाह में लेने में जुटे हैं। मंगलयान इस खोजी दल का सातवां सदस्य होगा। नासा का क्यूरॉसिटी रोवर अभी मंगल के गेल क्रेटर और माउंट शार्प की चट्टानों की संरचना का अध्ययन कर रहा है।
मैवेन बनाम मंगलयान
नासा का मैवेन18 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 04 दिन की यात्रा
71.1 करोड़ किमी यात्रा
33 मिनट तक हुआ इंजन परीक्षण
7.55 बजे (22 सितंबर) को कक्षा में पहुंचा
01 वर्ष मिशन की अवधि
4026 करोड़ रुपये लागत
386 गुना 44600 किमी की कक्षा में घूमेगा
इसरो का मंगलयान05 नवंबर को प्रक्षेपित
10 माह 19 दिन यात्रा
66.6 करोड़ किमी यात्रा
24 मिनट तक होगा इंजन परीक्षण
7.30 बजे (बुधवार सुबह) कक्षा में पहुंचा
06 माह मिशन की अवधि
450 करोड़ रुपये लागत
372 गुना 80 हजार किमी की कक्षा में घूमेगा
मंगल पर मानव को भेजने का अहम पड़ावअगर मैवेन कभी मंगल पर कभी मौजूद रहे जलस्रोतों के बारे में आंकड़े जुटा पाया तो यह इस ग्रह पर मानव को भेजने के मिशन की दिशा में अहम पड़ाव साबित होगा। इससे उन परिस्थितियों और विकल्पों को खोजने में मदद मिलेगी कि मानव वहां कैसे खुद को जिंदा रख सकता है। नासा ने वर्ष 2030 में इस ग्रह पर मानव को भेजने की योजना बनाई है।
लाल ग्रह की कैसे होगी निगरानी
- बंगलुरु के बयालू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से नजर
- नासा के फ्लोरिडा के जेट प्रोपल्शन सेंटर के वैज्ञानिक रखेंगे नजर
- कैनबरा और मैड्रिड में नासा के डीप स्पेस नेटवर्क से रहेगा संपर्क
आखिरी क्षण बेहद अहम
- कक्षा में प्रवेश करते वक्त दूरी, गति की सटीक स्थित जानना अहम
- मंगलयान के बारे में इसरो और नासा के आंकड़ों एक जैसे पाए गए
नासा ने शुरू की 20 हजार डॉलर की प्रतियोगितामंगल के वातावरण में प्रवेश करने वाले अंतरिक्ष यान को जरूरी वजन संतुलन मुहैया कराने में मददगार विज्ञान और तकनीक के छोटे उपकरणों का खाका तैयार करने वालों के लिए नासा ने 20,000 डॉलर का इनाम घोषित किया है। इसके लिए प्रविष्टियां 21 नवंबर तक भेजी जा सकेंगी। विजेता की घोषणा जनवरी 2015 के मध्य में होगी।

Kalpana Chawla (कल्पना चावला)

Kalpana Chawla (कल्पना चावला) एक भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी। वे कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गए सात यात्री दल सदस्यों में से एक थीं।
कल्पना चावला का जन्म सन  १९६१ मे हरियाणा के करनाल शहर मे एक मध्य वेर्ग्याई परिवार मे हुआ था | उसकी पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला तथा और माता का नाम संज्योती था |                                                                वह अपने परिवार के चार भाई बहनों मे सबसे छोटी थी | घर मे सब उसे प्यार से मोटो कहते थे | कल्पना की प्रारंभिक पढाई लिखाई टैगोर  काल निकेतन मे हुई | कल्पना जब आठवी कक्षा मे पहुची तो उसने इंजिनियर बनने की इच्छा प्रकट की | उसकी माँ ने  अपनी बेटी की भावनाओ को समझा और आगे बढने मे मदद की | कल्पना का सर्वाधिक महत्व पूर्ण गुण था - उसकी लगन और जुझारू प्रवर्ती | प्रफुल्ल स्वभाव तथा बढ़ते अनुभव के साथ कल्पना न तो काम करने मे आलसी थी और न असफलता मे घबराने वाली थी | धीरे-धीरे निश्चयपूर्वक युवती कल्पना ने स्त्री - पुरुष के भेद-भाव से उपपर उठ कर काम किया तथा कक्षा मे अकेली छात्रा होने पर भी उसने अपनी अलग छाप छोड़ी |
अपनी उच्च शिक्षा के लिये कल्पना ने अमेरिका जाने का मन बना लिया | उसने सदा अपनी महत्वाकाक्षा को मन मे सजाए रखा |
उसने ७ नवम्बर २००२ को टेक्सास विश्वविद्यालय मे एक समाचार  पत्र को बतया "मुझे कक्षा मे जाना और उड़ान छेत्र के विषय  मे सीखने मे व प्रश्नों के उत्तर पाने मे बहुत आनंद आता था "| अमेरिका पहुचने पर उसकी मुलाकत एक लम्बे कद के एक अमेरिकी व्यक्ति जीन पियरे हैरिसन से हुई | कल्पना ने हैरिसन के निवास के निकट ही एक अपार्टमेन्ट में अपना निवास बनाया इससे से विदेशी परिवेश में ढलने में कल्पना को कोई कठिनाई नहीं हुई | कक्षा में इरानी सहपाठी इराज कलखोरण उसका मित्र बना |
इरानी मित्र ने कक्षा के परवेश तथा उससे उत्पन समस्या को भाप लिया उसे वहा के तोर्तारिके समझाने लगा | कल्पना शर्मीले स्वभाव की होते हुआ भी एक अच्छी श्रोता थी | जीन पीयरे से कल्पना की भेट धीरे -धीरे मित्रता में बदल गई | विश्वविद्यालय परिसर में ही 'फ्लाईंग  क्लब 'होने से कल्पना वहा प्राय जाने लगी थी |फ्लाईंग का छात्र होने के साथ-साथ जीन पियरे अच्छा गोताखोर भी था |
एक साल बाद १९८३ में एक सामान्य समारोह में दोनों विवाह - सूत्र में बन्ध गए |  मास्टर की डिग्री प्राप्त करने तक कल्पना ने कोलोरेडो जाने  का मन बना लिया | मैकेनिकल इंजीनियरिंग में doctorait करने के लिए उसने कोलोरेडो के नगर बोल्डर के विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया | सन १९८३ में कल्पना कलिफोर्निया की सिल्कॉंन  ओनर सेट मैथड्स इन्फ्रो में उपाध्यक्ष एवं शोध विज्ञानिक के रूप में जुड़ गयी |जिसका दायित्व अर्रो डायनामिक्स के कारण अधिकाधिक प्रयोग की तकनीक तैयार करना और उसे लागू करना था | अंतरिक्ष में गुरुत्वकर्ष्ण में कमी के कारण मानव शरीर के सभी अंग स्वता क्रियाशील होने लगते है | कल्पना को उन क्रियाओ का अनुसरण कर उनका अध्यन करना था | इसमे भी कल्पना व् जीन पियरे की टोली सबसे अच्छी रही जिसने सबको आश्चर्य में ड़ाल दिया | नासा के अंतरिक्ष अभियान कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा रखने वालो की कमी नहीं थी | नासा अंतरिक्ष यात्रा के लिय जाने का गौरव विरले ही लोगो के भाग्य में होता है और कल्पना ने इसे प्राप्त किया |
६ मार्च १९९५ को कल्पना ने एक वर्षीय प्रशिक्षण प्रारंभ किया था वेह दस चालको के दल मे सम्मलित होने वाले नौ अभियान विशेषज्ञ मे से एक थी | नवम्बर १९९६ मे अंतत: वह सब कुछ समझ गई | जब उसे अभियान विशेषज्ञ तथा रोबोट संचालन का कार्य सौपा गया | तब टेक कल्पना ना मे सम्नायता के .सी  के नाम से विख्यात हो गई थी | वह नासा दवारा चुने गये अन्तरिक्ष यात्रियों के पंद्रहवे दल के सदस्य के रूप मे प्रशिक्षण मे सम्लिलित हो गई | पहली बार अंतरिक्ष यात्रा का स्वपन १९ नवम्बर १९९७ को भारतीय समय  के अनुसार लगभग २ बजे एस.टी.एस-८७ अंतरिक्ष यान के द्वारा पूरा हुआ | कल्पना के लिए येहे अनुभव स्वं में विनम्रता व जागरूकता लिए हुआ था कि किस प्रकार पृथ्वी  के सौन्दर्य एवम उसमें उपलब्ध धरोहरों को संजोये रखा जा सकता है|
नासा ने पुनः कल्पना को  अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना | जनवरी १९९८ में उसे शटल यान के चालक दल का प्रतिनिधि धोषित किया गया और शटल संशन फलाइट क्रू  के साजसामान का उत्तरदायित्व दिया गया |बाद में वह चालक  दल प्रणाली तथा अवासीयें विभाग कि प्रमुख नियुक्त की गयी | सन २००० में उसे एस.टी.एस -१०७ के चालक दल में सम्मलित किया गया |
अंतरिक्ष यान का नाम कोलंबिया  रखा गया जिसकी तिथि १६ जनवरी २००३ निश्चित की  गई | एस .टी .एस - १०७ अभियान वैज्ञानिक खोज पर केन्द्रित था | प्रतिदिन सोलह घंटे से अधिक कार्य करने पर अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी सम्बन्धी वैज्ञानिक अंतरिक्ष विज्ञान तथा जीव विज्ञान पर प्रयोग करते रहे |
सभी तरह  के अनुसंधान तथा विचार - विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल मे अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई | नासा तथा सम्पूर्ण विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी | कोलंबिया  अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया कल्पना सहित उसके छै साथियों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु से चारो ओर सन्नाटा छ: गया |
इन सात अंतरिक्ष यात्रियों की आत्मा , जो फ़रवरी २००३ की मनहूस सुबह को शून्य मे विलीन हुई,सदैव संसार मे विदयमान रहेगी | करनाल से अंतरिक्ष तक की कल्पना की यात्रा सदा हमारे साथ रहेगी |
पुरस्कार
मरणोपरांत:
* काँग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान
* नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
* नासा विशिष्ट सेवा पदक
* प्रतिरक्षा विशिष्ट सेवा पदक

ब्रह्मांड की उत्पत्ति: बिग बैंग थ्योरी


ऐसा विश्वास किया जाता है कि ब्रम्हांड की उत्पत्ति लगभग 15 अरब साल पहले घने, गर्म बूँद के रूप में शुरु हुआ था. इस अवधि के दौरान, ब्रह्मांड केवल हाइड्रोजन और हीलियम की एक छोटी राशि से निर्मित था. साथ ही कोई तारे और ग्रहों का उस समय किसी भी प्रकार का कोई अस्तित्व नहीं था. जब यह ब्रह्मांड 100 मिलियन साल पुराना हुआ तो तारों का उद्भव शुरू हुआ जिसमे केवल हाइड्रोजन गैस ही स्थित था. लगभग इसी प्रक्रिया से 4490000000 साल पहले सूर्य की उत्पत्ति की प्रक्रिया शुरू हुई थी.
बिग बैंग थ्योरी
जार्ज लेमैत्रे (1927) ने ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के संदर्भ में एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया था जिसे बिग बैंग सिद्धांत कहा जाता है. बिग बैंग सिद्धांत के द्वारा ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के विस्तार की परिकल्पना प्रमाणित है.
अतीत में, ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड सघन और गर्म  था. पुरा ब्रह्मांड एक छोटे से बिंदु के अन्दर समाहित था और इसी से पूरे ब्रह्मांड का उदभव माना जाता है. ब्रह्मांड के प्रारंभिक विस्तार के बाद,  ब्रहमांड के ज़मने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई. जिसकी वजह से सुब-एटोमिक कणों की रचना हुई. ये सब-एटोमिक कण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बने हुए थे. कणों की बहुलता के कारण ही बाद में हाइड्रोजन का निर्माण हुआ और बाद में हीलियम और लिथियम का निर्माण भी संभव हुआ. इन्ही कणों के बाद में संगठित होने की वजह से तारों और ग्रहों का निर्माण संभव हुआ. इनमें मौजूद भारी पदार्थों का इन तारों या सुपरनोवा के अन्दर विश्लेषण हुआ और इनके बनने में भी इन प्रक्रियायों की भारी भूमिका रही. इसलिए, बिग बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड की प्रारंभिक स्थिति की व्याख्या नहीं करता, लेकिन इसके यह ब्रह्मांड के सामान्य विकास का वर्णन करता है.
आइन्स्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (General Theory of Relativity) विज्ञान के चमत्कारिक सिद्धांतों में से एक है, और चीजों को देखने का हमारा नज़रिया पूरी तरह बदल देती है. इस थ्योरी को समझना हालांकि अत्यन्त मुश्किल है लेकिन फिर भी इससे ब्रहमांड की उत्पत्ति के संदर्भ में अनेक सुराख़ मिलते हैं.
यह एडविन हब्बल थे जिन्होंने वर्ष 1929 में यह बताया कि सभी गैलेक्सी एक दूसरे से सिकुड़ रहे हैं. उन्होंने इस बात को भी बताया कि दूरस्थ की आकाशगंगाओं के मध्य आपसी सम्बन्ध होता है. और वे रेड्शिफ्ट के माध्यम से एक-दूसरे से सम्बंधित होती हैं. यद्यपि ब्रहमांड की उत्पत्ति के सन्दर्भ में दो सिद्धांतों बिंग-बैंग सिद्धांत और स्टेडी स्टेट थ्योरी मौजूद थें. लेकिन वर्ष 1964 में, कॉस्मिक माइक्रोवेव पृष्ठभूमि विकिरण की खोज के साथ ही बिग बैंग सिद्धांत की पुष्टि की गयी थी. 1992 में, कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्स्प्लोरर के लांचिंग के बाद यह पता चला कि ब्रहमांड की उत्पत्ति के प्रथम अवधि में ही इसकी कुल ऊर्जा का 99.7% ऊर्जा उन्मुक्त हो चूका था. इससे यह प्रमाणित होता है कि ब्रहमांड की उत्पत्ति सिर्फ एक विस्फोट का परिणाम थी. जिसकी वजह से इसका नाम बिग-बैंग पड़ा. और इस विस्फोट होने वाले पदार्थ का घनत्व,तापमान और भार काफी अधिक था. यह तथ्य बिग बैंग सिद्धांत की पुष्टि करता है.