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सोमवार, 31 जुलाई 2017

दो ग्रहों से मिल कर बनी है हमारी पृथ्वी

साढ़े चार अरब वर्ष पहले थिया से हुई थी जोरदार टक्कर
हमारे सौरमंडल में व्यास, द्रव्यमान अौर घनत्व के मामले में पृथ्वी सबसे बड़ा स्थलीय ग्रह है. लेकिन इसकी उत्पत्ति और जीवन की शुरुआत कैसे हुई, यह हमेशा से एक पहेली रही है़  समय-समय पर वैज्ञानिक इस बारे में अपने-अपने शोध समर्थित तर्क पेश करते रहते हैं. इस क्रम में एक नये शोध में यह बात सामने आयी है कि धरती की उत्पत्ति दो ग्रहों के टकरा कर जुड़ने से हुई है़  जानें इसे तफ्सील से -
क्या आपको पता है कि साढ़े चार अरब वर्ष पहले थिया नाम का एक ग्रहीय भ्रूण हमारे ग्रह के साथ टकराया था? जिस वक्त यह टक्कर हुई थी, उस समय हमारा ग्रह 10 करोड़ साल पुराना था. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया एंड लॉस एंजिलिस (यूसीएलए) के वैज्ञानिकों के मुताबिक थिया नाम का यह ग्रहीय भ्रूण मंगल या धरती के आकार के बराबर का था. वैसे यह पहले से पता था कि थिया और धरती की टक्कर हुई थी. हालांकि पहले खगोलविदों का मानना था कि दोनों ग्रह 45 डिग्री के कोण पर एक-दूसरे से टकराये थे, लेकिन नये शोध के मुताबिक यह टक्कर सीधी व जोरदार थी.           
शोधकर्ताओं ने तीन अपोलाे मिशन्स (अपोलाे 12, 15 और 17) के जरिये मिली चंद्रमा की सात चट्टानों का अध्ययन किया. उनकी तुलना हवाई व एरिजोना में मिली छह ज्वालीमुखीय चट्टानों से की़ इसमें पाया गया कि चट्टानों में मिले ऑक्सीजन के आइसोटोप्स में कोई अंतर नहीं था़ यह भी स्थापित हो गया कि दोनों ही चट्टानों में एक ही तरह के गुण-धर्म थे़
वहीं, शोध रिपोर्ट के मुख्य लेखक यूसीएलए में जियोकेमिस्ट्री और कॉस्मोकेमिस्ट्री के प्रोफेसर एडवर्ड यंग बताते हैं कि शोध के दौरान हमने धरती व चंद्रमा के ऑक्सीजन आइसोटोप्स में कोई अंतर नहीं पाया़   पुराने अध्ययन बताते हैं कि थिया व पृथ्वी की टक्कर मामूली सी थी, जिससे टूटकर चंद्रमा बना. यदि यही सही होता तो पृथ्वी और चंद्रमा के आइसोटोप्स एक जैसे न होकर अलग-अलग होते. चंद्रमा में थिया के अंश ज्यादा होते, जबकि ऐसा नहीं है़
दूसरी ओर, भारतीय मूल के एक शोधार्थी सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में एक नया सिद्धांत पेश किया है. इस दल ने धरती पर जीवन की उत्पत्ति के संबंध में ब्रह्मांडीय रासायनिक प्रतिक्रियाओं का नया रूप सामने रखा है. शोधकर्ताओं ने पाया कि धरती पर काष्ठ अल्कोहल के रूप में पहचाना जाने वाला मिथेन का एक यौगिक मिथेनॉल, मिथेन से भी ज्यादा प्रतिक्रियाशील है. प्रयोगों व गणना के जरिये वैज्ञानिकों ने यह प्रदर्शित किया कि मिथेनॉल विभिन्न किस्म के हाइड्रोकार्बन यौगिकों और उसके उत्पादों, जिनमें हाइड्रोकॉर्बन के आयन (कार्बोकेशन और कार्बेनियन) भी शामिल हैं, के विकास में सहायक हो सकता है.
साउथ कैरोलीना विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के मुख्य शोधकर्ता जॉर्ज ओला और जीके सूर्य प्रकाश का मानना है कि जब उल्का पिंडों और क्षुद्र ग्रहों के जरिये हाइड्रोकार्बन और अन्य उत्पाद धरती पर आये, तो यहां अनोखी 'गोल्डीलाक' जैसी स्थिति बनी.
नतीजा यह हुआ कि धरती पर पानी, सांस लेने योग्य वातावरण बनने के साथ-साथ तापमान नियंत्रित हो गया जिससे जीवन की शुरुआत हुई. गौरतलब है कि खगोलशास्त्र में किसी तारे का 'गोल्डीलाॅक जोन', यानि रहने लायक क्षेत्र उस तारे से उतनी दूरी का क्षेत्र होता है, जहां पृथ्वी जैसा ग्रह अपनी सतह पर द्रव (लिक्विड) अवस्था में पानी रख पाये और वहां पर जीव जी सकें.
बहरहाल, ब्रह्मांड के निर्माण के शुरुआती क्षणों में महाविस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा से हाइड्रोजन और हीलियम गैसें बनीं. अन्य तत्वों की उत्पत्ति बाद में ग्रह के गर्म भाग से हुई, जिनमें हाइड्रोजन के रूपांतरण से ही नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन और अन्य तत्वों की उत्पत्ति हुई. 
वैज्ञानिकों का कहना है कि लाखों वर्ष बाद जब सुपरनोवा विस्फोट हुआ तो अंतरिक्ष में ये तत्व फैल गये, जिनसे जल, हाइड्रोकार्बन यौगिक जैसे मिथेन और मेथेनॉल का निर्माण हुआ. लेकिन इन जटिल हाइड्रोकार्बन यौगिकों का निर्माण कैसे संभव हुआ, जिससे जीवन की शुरुआत हुई, यह जानने और समझने के लिए हमें अगले शोध की रिपोर्ट आने तक इंतजार करना होगा़

खुलेगा रहस्‍य, कैसे बनी पृथ्‍वी, इंसान और जानवर


खुलेगा रहस्‍य, कैसे बनी पृथ्‍वी, इंसान और जानवर 

जेनेवा। पहले अंडा की पहले मुर्गी वाली पहले अब सुलझने के करीब पहुंच गई है। आज दोपहर इस बात का ऐलान हो जायेगा कि आखिर ये धरती, इंसान या ये जानवर बने कैसे। आखिर हमें या इन्‍हें किस तत्‍व ने बनाया। फ्रांस और स्विटरजरलैंड की सीमा पर जेनेवा में बनी 27 किमी लंबी सुरंग नुमा प्रयोगशाला में गॉड पार्टिकल नाम के कण की तलाश अपने मुकाम तक पहुंच चुकी है। वैज्ञानिकों का मनना है कि इसी कण से ब्रह्मांड बना है। सूत्रों की मानें तो ऐसी उम्‍मीद जताई जा रही है कि वैज्ञानिकों ने जिन कणों को ढूंढ निकाला है वो उसे भगवान से जुड़ा नहीं मानते हैं। मगर उनका यह मानना जरुर है कि इसी कण से पूरी दुनिया की उत्‍पत्ति हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उर्जा का वो पुंज है जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया है। इस कण का नाम है गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोजोन। दुनिया इसका नाम जानती है लेकिन ये नहीं जानती कि असल में ये है क्या। मालूम हो कि हिग्स की खोज को इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में माना जा रहा है। सर्न के अंदर दो अलग अलग प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका नाम एटलर और सीएमएस है। दोनों का लक्ष्य हिग्स कण का पता लगाना था। कई किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा प्रयोगशाला तैयार की गई थी, जिसमें तीन साल से भी ज्यादा समय से प्रयोग चल रहा था। यहां बिग बैंग विस्फोट जैसा माहौल तैयार किया गया था, ताकि इसके रहस्यों को समझा जा सके। यहां बता दें कि हिग्स बोसोन में बोसोन शब्द भारत के वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर रखा गया है। यह अलग बात है कि इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। देखना खासा रोचक होगा जब वैज्ञानिक ये बताएंगे कि असल में वो कौन सा तत्व है जिससे हमारा आपका निर्माण हुआ है। आखिरकार हिग्स बोजोन नाम की वो चीज है क्या जिसकी वजह से 13.7 खरब साल पहले ब्रह्मांड का अस्तित्व आया।